रूस के भूकंप से कांपा प्रशांत महासागर, लेकिन भारत कैसे बचा रहा? जानिए पूरी रिपोर्ट
Aug 1, 2025, 2:00 PM | Skymet Weather Team
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रूस के कामचाटका प्रायद्वीप के पास समुद्र के नीचे 30 जुलाई 2025 की सुबह एक शक्तिशाली भूकंप आया। यह भूकंप टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल के कारण आया और इसकी तीव्रता 8.8 मैग्नीट्यूड थी, जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक मानी जाती है। इसके बाद सुनामी की चेतावनियाँ जारी कर दी गईं, जो जापान से लेकर हवाई और यहां तक कि न्यूज़ीलैंड तक पहुंचीं।

टेक्टोनिक प्लेटों की टक्कर: सबडक्शन ज़ोन की हलचल

भूकंप का केंद्र उस इलाके में था जहां प्रशांत प्लेट ओखोत्स्क प्लेट के नीचे खिसकती है। यह क्षेत्र पहले से ही भूकंपीय गतिविधियों के लिए जाना जाता है। ऐसे सबडक्शन ज़ोन में आने वाले शक्तिशाली और उथले भूकंप समुद्र की बड़ी मात्रा को हिला सकते हैं, जिससे लंबी दूरी तक सुनामी की लहरें उठ सकती हैं।

प्रभाव और आसपास के क्षेत्रों की स्थिति

भूकंप के तुरंत बाद रूस के कामचाटका और कुरिल द्वीप, उत्तरी जापान, हवाई और अलास्का में तटीय क्षेत्रों के लिए सुनामी चेतावनियाँ जारी की गईं। जापान और रूस में कुछ जगहों पर हल्की सुनामी लहरें देखी गईं, लेकिन कोई बड़ा नुकसान या बाढ़ नहीं हुई। जहां चोटें आईं, वे भी मामूली थीं।

स्थिति सामान्य होते ही चेतावनियाँ की गईं कम

दोपहर तक जैसे ही समुद्र तल की लहरें सामान्य होने लगीं और लहरों की तीव्रता नहीं बढ़ी, रूस, हवाई और जापान में अधिकारियों ने चेतावनियाँ कम करना शुरू कर दिया। रूस ने कामचाटका प्रायद्वीप, सखालिन द्वीप और सेवेरो-कुरिल्स्क के लिए चेतावनियाँ वापस ले लीं। जापान ने भी दक्षिणी तट (फुकुशिमा के दक्षिण) के लिए चेतावनी को एडवाइजरी में बदल दिया, और हवाई में भी लोगों को सिर्फ सतर्क रहने की सलाह दी गई।

भारत रहा सतर्क, लेकिन खतरे से बाहर

भूकंप के स्थान और ताकत को देखते हुए भारत भी सतर्क रहा, हालांकि उसे कोई सीधा खतरा नहीं था। भारत के मौसम और समुद्री सूचना केंद्र INCOIS ने रीयल-टाइम समुद्र स्तर और मॉडल के ज़रिए तुरंत स्थिति का विश्लेषण किया। चूंकि भूकंप की ऊर्जा उत्तर-पूर्व दिशा में प्रशांत महासागर की ओर गई, इसलिए भारतीय तट पूरी तरह सुरक्षित रहा।

हाल ही में हुई अन्य भूकंपीय गतिविधियाँ

INCOIS ने इसी क्षेत्र में हाल ही में हुई कुछ और भूकंपीय गतिविधियाँ भी नोट कीं। 20 जुलाई को कामचाटका क्षेत्र में 6.5 और 7.2 तीव्रता के दो भूकंप 30 मिनट के अंतर में आए। 29 जुलाई को निकोबार द्वीप के पास 6.6 तीव्रता और मैक्वारी द्वीप (न्यूजीलैंड और अंटार्कटिका के बीच) के पास 6.5 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया। हालांकि ये भूकंप मध्यम तीव्रता के थे और ऐसी गहराई पर आए कि किसी तरह की सुनामी नहीं बनी।

भूकंप और सुनामी बनने की प्रक्रिया को समझना

भूगर्भ और मौसम विज्ञान की दृष्टि से देखें तो ऐसे घटनाक्रम यह दिखाते हैं कि कैसे पृथ्वी की टेक्टोनिक हलचलें और समुद्री प्रणाली एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। विशेष रूप से मेगाथ्रस्ट भूकंप जो समुद्र की सतह के नीचे आते हैं। समुद्र की ज़मीन को ऊपर-नीचे कर सकते हैं, यही प्रक्रिया सुनामी का कारण बनती है। लेकिन हर बड़ा भूकंप सुनामी नहीं लाता, और जिनमें आता है उनका असर इलाके की भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है।

आपदा की तैयारी का महत्व

प्रशांत महासागर में हुई यह घटना दिखाती है कि जल्द चेतावनी प्रणाली, समुद्र पार निगरानी नेटवर्क, और रीयल टाइम डाटा मॉडलिंग कितनी जरूरी है। भले ही इस बार भारत पर कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन यह वैज्ञानिक तैयारी और भूगोल की भूमिका को रेखांकित करता है।

आगे की राह: वैश्विक निगरानी और सतर्कता जरूरी

अब जब प्रशांत क्षेत्र में स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, यह घटना हमें याद दिलाती है कि वैश्विक स्तर पर भूगर्भीय निगरानी और सहयोग न केवल आपदा के समय, बल्कि शांति के समय भी जरूरी है, जब विज्ञान और सतर्कता मिलकर हमारी रक्षा करते हैं।